एक चिड़िया थी hindi poet ak chidiya thi

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एक चिड़िया थी  ....

Balkishor bhagat

                                               ✍️ लेखक :- बालकिशोर भगत

एक चिड़िया थी


 फूलों से कुछ तिनके चोंच में,अपनी भरकर लाती थी

एक चिड़िया थी जो रोज सवेरे मेरे घर में आती थी

सूरज से पहले आकर ही,मुझको रोज जागती थी

एक चिड़िया थी जो रोज सवेरे मेरे घर में आती थी..


 बहुत पुरानी बात हुई है,जब मैं छोटा बच्चा था

खुला खुला घर बार था मेरा,हां पर कच्चा था

रिश्ता सच्चा था उसका,सच में रोज निभाती थी

एक चिड़िया थी रोज सवेरे मेरे घर में आती थी..


मैं मुंडेर में दाना पानी उसको देकर आता था

एक दाना भी वह खा ले तो,मैं कितना खुश हो जाता था

वो फिर ची ची करके मुझको सारा हाल बताती थी

एक चिड़िया थी जो रोज सवेरे मेरे घर में आती थी..


धीरे-धीरे मैंने देखा जैसे हम सब बड़े हुए

मन के अंदर इच्छाओं के कितने पर्वत खड़े हुए

डाल वही काटी थी हमने, जिस पर वह इठलाती थी

एक चिड़िया थी रोज सवेरे मेरे घर में आती थी..


रिश्ते उसने खूब निभाए लेकिन हमने तोड़ दिए

पक्के घर के पागलपन में,उसके अंडे फोड़ दिए

दर्द नहीं सुन पाए उसका जो वो दर्द सुनाती थी

एक चिड़िया थी जो रोज सवेरे घर मे आती थी..


फिर एक दिन वह चोंच भी उसकी एक पत्थर से लाल हुई

इक दिन छोड़ गई निर्मम शरीर को, वह इतना बेहाल हुई

बिखर गये वो दाने सारे,जो भर भर कर वो लाती थी 

एक चिड़िया थी जो रोज सवेरे मेरे घर में आती थी..

💚💛 Thanks for Reading ❤️💜

Your's Balkishor bhagat 
🙏
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