Ujla hi ujla

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Balkishor bhagat


की उजला ही उजला शहर होगा जिसमें हम तुम बनाएंगे घर,

दोनों रहेंगे कबूतर से जिसमें होगा ना बाजो का डर l

मखमल सी नाजुक दीवारें भी होंगी, कोनो में बैठी बहारे भी होंगी l

खिड़की की चौखट भी रेशम की होगी, चंदन सी लिपटी सेहन भी होगी l

चन्दन की खुशबू भी टपकेगी छत से,फूलों का दरवाजा खोलेंगे झट से l

डालेंगे मय की हवा के हाँ झोंके,

आंखों को छू लेंगे गर्दन भिगो के l

आंगन में बिखर पड़े होंगे पत्ते,

सूखे से नाजुक से पीले छिटक के l

 पावों को नंगा जो करके चलेंगे,चरपर की आवाज से वह बजेंगे l

कोयल कहेगी कि मैं हूं सहेली, मैना कहेंगी नहीं तू अकेली l

हम फिर भी होंगे पड़े आंखें मुंदे, गलियों की लड़ियां दिलो में हाँ गुंधे l

भूलेंगे उस पर के उस जहाँ को, जाती है कोई डगर, जाती है कोई डगर l

चांदी के तारों से रातें बुंनेंगे तो चमकीली होगी सहर

उजला ही उजला.....

                      Creat by :- Balkishor bhagat(monu)

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