Thoda to Kam rah jati hai (थोड़ा तो कम रह जाती है )Hindi poem

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                Thoda to Kam rah jati hai 

                                                   :- balkishor Bhagat

Thoda to Kam rah jata hai
Balkishor Bhagat 


खुशियों का चाहे समंदर हो 

घुल नमक सा गम रह जाती है,

है काबिल,पर शायद कर ले

इतना तो वहम रह जाती है,

एवरेस्ट शिखर चाहे चढ ले

फूटा वो करम रह जाती है,

चाहे कुछ भी कर ले लड़की, थोड़ा तो कम रह जाती है।


क्या क्या नहीं नापा उसने 

पर्वत, सागर ,क्या आकाश नहीं ,

नुक्कड़ तक अकेले जा पायेगी

क्यों इतना भी विश्वास नहीं।

घर की इज्जत का बोझ लदा 

बस रुका कदम रह जाती है,

चाहे कुछ भी कर ले लड़की 

थोड़ा तो कम रह जाती है ।


हर पैमाना बस उसके लिये 

लड़के भी भला क्या नपते हैं, 

लड़की ग्रंथो सी ढकी छुपी

वो अखबारों सा छपते हैं ।

ज्यादा बोलें तो हैं चालू 

न बोलें बोड़म कहलाती है ,

चाहे कुछ भी कर ले लड़की 

थोड़ा तो कम रह जाती है।


जो घर में रहे तो नाकारा 

बाहर निकले तो आवारा ,

बहती भी रहे पर रूकी रहे 

 सब चाहें ऐसी हो धारा ।

बस उसको ही पालन करना

ऐसा वो धरम रह जाती है,

चाहे कुछ भी कर ले लड़की 

थोड़ा तो कम रह जाती है।


मोटी हो,तब तो है मोटी

पतली हो तो कहो मांसल नहीं,

जो ठंडी ,कहो की हॉट नही

हो आग कहो ,शीतल नहीं

जब अकल हो,बोलो शकल नहीं 

जो शकल हो बोलो अकल नही,

गर अकल शकल जो दोनों हों 

कह दो रहने का शगल नहीं,

 जब चंचल हो , चाहो सादी 

सीधी हो,तो बोलो चपल नहीं ।

चाहे कितनी भी हो कंचन काया 

सौ ग्राम अधिक कम रह जाती है

चाहे कुछ भी कर ले लड़की

थोड़ा तो कम रह जाती है।

थोड़ा तो कम रह जाती है

Thankyou for Reading

🙏

Yours Balkishor bhagat (Monu)

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